यूनिवर्सिटीज़ ऑफ़ मिशिगन
ऐण्ड विर्जिनिया
मिर्ज़ा असदुल्लाह ख़ान
ग़ालिब
ग़ज़ल in -अत ही सही
इश्क़ मुझको नहीं, वहशत ही सही
मेरी वहशत तेरी शोहरत ही सही
। । १ । ।
क़िता कीजिए न ताल्लुक़ हम से
कुछ नहीं है, तो अदावत ही सही
। । २ । ।
मेरे होने में है क्या
रुसवाई ?
अए, वह मजलिस
नहीं, ख़िलवत ही सही । । ३ ।
।
हम भी दुश्मन तो नहीं हैं
अपने
ग़ैर को तुझसे मुहब्बत ही सही
। । ४ । ।
अपनी हस्ती ही से हो
जो कुछ हो
आगाही गर नहीं ग़फ़लत ही सही
। । ५ । ।
उम्र हरचन्द कि है बर्क़-ए-ख़िराम
दिल के ख़ून करने की फ़ुर्सत ही
सही । । ६ । ।
हम कोई तर्क-ए-वफ़ा करते
हैं !
न सही इश्क़,
मुसीबत
ही सही । ।
७ । ।
कुछ तो अे फ़लक-ए-ना-इन्साफ़,
आह-ओ-फ़र्याद की रुख़सत ही सही
। । ८ । ।
हम भी तसलीम की ख़ू
डालेंगे,
बेनियाज़ी तेरी आदत ही सही
। । ९ । ।
यार से छेड़ चली जाए, ' असद '
गर नहीं वस्ल तो
हसरत ही सही । । १॰
। ।
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Keyed in 18 Nov 2001. Posted 19 Nov 2001. Corrected 29 Mar 2005.